Aug 31, 2010

"कश्मीर" पूजा लाखन की कविता

यह जगह क्या है?
युद्ध स्थल या वध स्थल ?
सिर पर निशाना साधे
सेना के इतने जवान
यहाँ क्यों हैं?

क्या यह हमारा ही देश है
या दुश्मन देश पर कब्जा है
खून से लथपथ बच्चे, महिलाएँ, युवा, बूढ़े
सब क्यों उठाये हुए हैं
दोनों हाथों में पत्थर ?

इतना गुस्सा
मौत के खिलाफ़ इतनी बदसलूकी
इस क़दर बेफिक्री
क्या यह फिलीस्तीन है या
लौट आया है 1942 का मंज़र

समय समाज के साथ पकता है
और समाज बड़ा होता है
इंसानी जज़्बों के साथ
उस मृत बच्चे की आँख की चमक
धरती की शक्ल बदल रही है

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर का समय बीत चुका है
और तुम्हारे निपटा देने के तरीकों से
बन गए हैं कितने दलदल,
गुप्त कब्रें और श्मशान घाट

आग और मिट्टी के इस खेल में
क्या दफ़्न हो पायेगा एक पूरा देश
उस देश का पूरा जन
या गुप्त फाइलों में छुपा ली जाएगी
जन के देश होने की हक़ीक़त
आज़ाद मन के बेबस गुलाम हो जाने की ललक
धरती के लहूलुहान होने की सूरत

मैं मक्के के खेत में भुट्टे तोड़ती
अपने कश्मीर के बारे में सोच रही हूँ

-पूजा लाखन

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