Feb 20, 2011

तमिलनाडु जितनी ईमानदारी हिंदी के प्रति कहीं नहीं है

मैं एक दिल्ली में रहने वाले ऐसे सज्जन को जानता हूँ जो हमेशा किसी भी सुधारात्मक प्रक्रिया की प्रतिक्रिया में रटा-रटाया जवाब देते हैं -"अरे साहब, ऐसा करने से तमिलनाडु में हंगामा हो जाएगा।" उनके इस उत्तर से उनका कितना हित होता है ये तो वे ही बता सकते हैं मगर इससे हिन्दी का तो कोई हित होता मुझे नज़र नहीं आता। मुझे हैरानी होती है कि हिन्दी के प्रचार-प्रसार का तथाकथित बीड़ा उठाने वाले लोग तमिलनाडु में हिंदी के नाम से इतने अधिक क्यों डरते हैं?

आज पदमश्री डॉ रामासामी जी से एक बार फिर मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पिछले कई वर्षों से वे सचिव, भारत सरकार के पद पर आसीन हैं और आज भी उनकी सरलता मन मोह लेती है। एक महान वैज्ञानिक के साथ-साथ वे संस्कृत के प्रकांड पंडित कहे जा सकते हैं। उन्होंने केंद्रीय चर्म अनुसंधान संस्थान यानी सी एल आर आई, चेन्नई में कई वर्षों तक  बड़े-बड़े वैज्ञानिकों के लिए हिंदी भाषा का प्रशिक्षण आयोजित करवाया। मुझे और श्रीमती प्रतिभा मलिक को वह प्रशिक्षण चलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।  यह प्रशिक्षण कई अर्थों में लीक से हटकर था। देश भर में यह दूसरा प्रशिक्षण केंद्र था जहां हिंदी भाषा का प्रशिक्षण कंप्यूटर-इन्टरनेट और एल सी डी प्रोजेक्टर के माध्यम से चला।

उल्लेखनीय है कि हमारे देश में सबसे पहला कंप्यूटर-प्रोजेक्टर आधारित हिंदी भाषा प्रशिक्षण केंद्र भी वर्ष 2001 में चेन्नई में ही शुरू हुआ था और इसे शुरू करने सौभाग्य भी संयोग से मुझे ही प्राप्त हुआ। चेन्नई में एक जगह है पल्लीकर्णी और वहाँ एक बहुत बड़ा परिसर है- एन आई ओ टी का... इसी परिसर में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का एक छोटा सा कार्यालय और भी है -आई सी एम ए एम जिसे हम लोग इकमाम भी कहते हैं, यह वही कार्यालय है जहां हिंदी भाषा का पहला कंप्यूटर-एल सी डी प्रोजेक्टर आधारित सरकारी प्रशिक्षण केंद्र चला। उसके बाद सी एल आर आई... फिर आई आई टी मद्रास...बी ई एल मद्रास...ई टी डी सी और फिर राजाजी भवन, बेसंट नगर,  मद्रास...

क्या देश में तमिलनाडु के बाहर  किसी शहर में कोई और ऐसी जगह है जहां हिन्दी शिक्षण योजना के हिन्दी भाषा के कंप्यूटर-इन्टरनेट-एलसीडी प्रोजेक्टर आधारित इतने सारे केंद्र बिना किसी बाधा के चले हों?  

बहुत कम लोग यह जानते हैं कि हिन्दी प्राध्यापकों के मामले में माननीय मद्रास उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अप्रेल 2009 में याचिकाकर्ता श्रीमती प्रतिभा मलिक को निर्देश दिया कि मामला हिन्दी प्राध्यापकों से संबन्धित है अत: क्यों न बहस भी हिन्दी में की जाए। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह था कि खंडपीठ के दोनों माननीय न्यायाधीशों और याचिकाकर्ता में से  किसी की भी मातृभाषा हिन्दी नहीं थी। देश के इतिहास में पहली बार 9 अप्रेल 2009 को मद्रास उच्च न्यायालय में लगभग 10 मिनट तक हिन्दी  में बहस हुई और उसके बाद मिश्रित भाषा में। 

इतना सब होने के बाद भी कहीं कोई समस्या नहीं हुई कोई हंगामा नहीं हुआ। वर्ष 2006-07  में मदुरै में राजभाषा हिन्दी के कार्यक्रमों में 250 से 300 तक प्रतिभागी शामिल हुए और तीन स्थानीय टीवी चैनलों ने उस कार्यक्रम को रिकार्ड किया। कोई हंगामा नहीं हुआ।

इतने पर भी अगर कोई हिन्दी के बहाने तमिलनाडु पर अंगुली उठाता है तो वह अपेक्षा से कम ईमानदार है। सच्चाई यह है कि तमिलनाडु जितनी ईमानदारी हिंदी के प्रति देशभर में कहीं नहीं है।

-अजय मलिक

1 comment:

  1. बिलकुल सही फ़रमाया है आपने. अपनी अकर्मण्यता का ठीकरा तमिलनाडु पर फोड़कर लोग बच जो जाते हैं. अच्छा लगा पढ़कर कि हिन्दी का प्रकाश तमिलनाडु से फूट रहा है. यहाँ कोलकाता में भी केन्द्रीय हिन्दी प्रशिक्षण उपसंस्थान की ओर से कई संस्थाओं के राजभाषा अधिकारियों के लिए कार्यशाला का योजन किया गया. श्रीमती पूनम दीक्षित ने काफी मेहनत की उसे सफल बनाने में, मुझे भी उन्होंने आमंत्रित किया था प्रौद्योगिकी और हिन्दी के संबंध में अपने विचार रखने के लिए. वेबसाइटों और ब्लागों के साथ-साथ गूगल द्वारा उपलब्ध कराई जा रही अनुवाद की सुविधा के बारे में भी विस्तार से बताया. आपके ब्लाग से भी प्रतिभागियों को परिचित कराया था. सभी ने काफी सराहा इसे. श्रीमती पूनम दीक्षित ने भी इंटरनेट और प्रोजेक्टर की भी व्यवस्था की थी. इंटरएक्टिव कार्यक्रम रहा. सभी को सूचनाप्रद लगा, मुझे भी संतोष हुआ. आप यहाँ रहते तो और कई काम कर पाते. आपकी गतिविधियाँ पढ़कर अच्छा लगता है.

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