Jan 28, 2014

हिंदी के 12250 गीत किसी भी भारतीय लिपि में पढ़िए ...

बहुत दिन बाद एक सुरीला जोड़ यानी लिंक लेकर हाजिर हूँ। नीचे दिए लिंक पर जाइए और हिंदी के 12250 गीतों में से जो भी जी चाहे वह गीत यूनिकोड में किसी भी भारतीय लिपि में पढ़िए-

लिरिक्स इंडिया की यह वेबसाइट कई मयानों  में बेजोड़ है। चुनिन्दा 3368 फिल्मों से चुने गए इन गीतों को पढ़ते-पढ़ते ही हिंदी सीखी जा सकती है। अधिकांश फिल्मों के गीत वीडियो लिंक्स के साथ दिए गए हैं। 
(लिरिक्स इंडिया के सौजन्य से )  

Jan 26, 2014

अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं

 
 
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका  सकते नहीं

हमने सदियों  में  ये आज़ादी  की नेमत पाई है
सैंकड़ों  कुर्बानियाँ  देकर  ये  दौलत  पाई    है
मुस्कुरा   कर  खाई  हैं  सीनों पे अपने गोलियां
कितने वीरानो से  गुज़रे  हैं तो जन्नत  पाई  है
ख़ाक में हम अपनी इज्ज़़त को मिला सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

क्या  चलेगी  ज़ुल्म  की  अहले-वफ़ा के सामने
आ नहीं  सकता  कोई  शोला  हवा  के सामने
लाख फ़ौजें ले के आए अमन   का दुश्मन कोई
रुक  नहीं  सकता  हमारी  एकता  के  सामने
हम वो पत्थर हैं जिसे दुश्मन हिला सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

वक़्त  की आवाज़ के  हम साथ  चलते जाएंगे
हर क़दम  पर ज़िन्दगी का  रुख बदलते जाएंगे
गर  वतन  में  भी मिलेगा  कोई  गद्दारे वतन
अपनी ताकत  से हम उसका सर कुचलते जाएंगे
एक  धोखा  खा  चुके  हैं  और खा सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

हम वतन  के  नौजवाँ  है हम से जो टकरायेगा
वो  हमारी  ठोकरों  से  ख़ाक में मिल  जायेगा
वक़्त  के तूफ़ान में  बह  जाएंगे  ज़ुल्मो-सितम
आसमां  पर  ये  तिरंगा  उम्र   भर  लहरायेगा
जो  सबक बापू  ने सिखलाया  भुला सकते नहीं
सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नहीं...
शकील बदायूनी                 

Jan 10, 2014

यह भी बीत चला... और आज भी कुछ नहीं लिखा जा सका

यह भी बीत चला ठीक वैसे ही जैसे बहुत से लोग जिनमें शायद मैं भी हूँ चुक गए। धीरे-धीरे और कभी तेजी से भी, बस यूँ ही गुजर जाती है जिंदगी। बहुत सोचते हैं हम जिंदा रहने के लिए, कितना तो बचते हैं सोचने से मृत्यु के बारे में। यदि कोई सोचना चाहता है तो उसकी सोच को नकारात्मक कह दिया जाता है। एक परम सत्य के बारे सोचना नकारात्मक क्यों है पता नहीं। शायद मस्तिष्क याकि सम्पूर्ण चिंतन में ही छुपा हुआ बेहद गहरा डर है जो अचेतन में होते हुए भी सबसे चैतन्य है।

ऊपरवाली पंक्तियाँ 2013 की विदाई के वक्त लिखी  थीं। समय कम था या कुछ वितृष्णा जैसा भाव था ...पता नहीं मगर सब अधूरा सा लगा और फिर छोड़ दिया याकि छूट गया। 

आज विश्व हिंदी दिवस है...ऐसा लोगों का मानना है। 

फेसबुक पर एक बंधु रोज सिर्फ जगाने का काम कर रहे हैं, वे सपने में यह सब कर रहे हैं या सोते हुए... वे कहते हैं जागो... मखमली बिस्तर पर पड़े लोग पहले ही इतने तनाव ग्रस्त हैं कि नींद उनसे और वे नींद से करोड़ों कोसों दूर है, ऊपर से ये महाशय उन्हें जगाए रखने के लिए कृत संकल्प हैं ताकि मखमली बिस्तर मिल सके। जब ये मखमली बिस्तर पर थे तो बड़ी लंबी और गहरी नींद सोते थे और सिर्फ सोते थे... अब हैं कि किसी को भी नहीं सोने देना चाहते।   
-अजय